नहीं उठ रहा कचरा, कागजों पर चल रही स्वच्छता

लापरवाही शहर की रैकिंग पर पड़ सकती है भारी


अपना लक्ष्य


राजधानी के अंदरूनी क्षेत्रों, कॉलोनियों व मोहल्लों में तीन-तीन दिन तक कचरे का कलेक्शन नहीं किया जा रहा। कागजों में शहर की सफाई व्यवस्था में मुस्तैदी दिखाने वाले नगर निगम की हालत यह है कि कचरा कलेक्शन को लेकर मॉनीटरिंग भी सही तरीके से नहीं की जा रही है। इसका अंदाजा भी इस बात से लगाया जा सकता है कि निगम की जुर्माने की कार्रवाई भी रस्म आदयगी तक सीमित हो गई है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे भी मामले पर कई बार निगम अधिकारियों की समीक्षा बैठकों में क्लास ले चुके हैं। बावजूद इसके कोई सुधार नहीं हुआ। स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 में नगर निगम की लापरवाही शहर की रैंकिंग पर भारी पड़ सकती है। प्लानिंग व मॉनीटरिंग में बड़ी खामी यह है कि निगम कर्मचारी ही खाली पड़ी जगहों में कचरा फेंक कर चले जाते हैं। इसका कारण टाइम मैनेजमेंट की कमी है। शहर में निगम ने डस्टबिन की सुविधा पहले ही खत्म कर दी है। अब कर्मचारी सफाई कर सीधे कचरा वाहनों में डंप करते हैं। प्लानिंग न होने के कारण समय पर गाड़ियां कचरा उठाने नहीं पहुंच पा रही हैं। पहली बात तो यह है कि शहर की अधिकांश कॉलोनियों से कचरा कलेक्शन ही नहीं किया जा रहा है। दूसरा जहां किया जा रहा है, वहां गीले-सूखे कचरे से संबंधित नियमों पर ही निगम कर्मचारियों का ध्यान नहीं है। दो- तीन दिन में एक बार कचरा कलेक्शन होने के कारण कॉलोनियों की स्थिति भी बेहद खराब हो रही है। जबकि, शहर का 40 प्रतिशत से अधिक कचरा कॉलोनियों से निकलता है। नगर निगम के कर्मचारी भी गीला-सूखा कचरा कलेक्शन में लापरवाही बरतते हैं। कचरा गीला हो या सूखा, एक ही खंड में डाल दिया जाता है। नगर निगम में स्वास्थ्य शाखा के पास शहर की साफ- सफाई का जिम्मा है। सूत्रों की मानें तो ज्यादातर सफाई कर्मचारी, दरोगा, प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर सहायक स्वास्थ्य अधिकारी तक कॉलोनियों से कचरा उठवाने के नाम पर पैसे भी लेते हैं। अवधपुरी, साकेत नगर, हबीबंगज अंडरपास के पास, जंबूरी मैदान, आनंद नगर, भानपुर जैसे क्षेत्रों में खाली पड़े स्थानों पर न सिर्फ कचरा फेंका जा रहा है, बल्कि निगम कर्मचारी सबूत मिटाने के लिए यहां आग लगाने से भी नहीं चूकतेबीते दिनों बर्रई व लाहरपुर के निवासियों ने कचरे में आग लगाए जाने की कई शिकायतें निगम प्रशासन से की थीं। इसके बाद भी कार्रवाई नहीं की गई। अवधुपरी क्षेत्र में खाली जगह पर कचरा डंप कर आग लगाना आम बात है। महापौर आलोक शर्मा का कार्यकाल भी समाप्त होने वाला है। इसके अलावा प्रदेश में सत्ता परिवर्तन और महापौर के चुनावों की अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव जैसे मामलों को देखते हुए जनप्रतिनिधियों की रफ्तार धीमी हो गई है। सर्वेक्षण के मद्देनजर शहर की सफाई व्यवस्था व प्रबंधन में महापौर से लेकर पार्षदों का अहम योगदान रहता था। कई अभियान चलाए जाते थे, बैठकों के दौर भी हुआ करते थे, जो इस बार दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। चार माह पहले नगरीय विकास एवं आवास विभाग के प्रमुख सचिव ने शहर में कचरा प्रबंधन में फेल नगर निगम की रिपोर्ट के लिए दल का गठन कर रिपोर्ट मांगी थी। इसके बाद निगम की जमकर किरकिरी भी हुई थी। अलग-अलग टीमों ने रिपोर्ट दी थी कि डोर टू डोर कचरा कलेक्शन सही तरीके से नहीं हो रहा है। कचरा उठाने का समय ही तय नहीं है। दूसरी टीम ने कहा कि बाजारों में सफाई की स्थिति अच्छी नहीं है। साथ ही गीला-सूखा कचरा अलग-अलग करने की प्रक्रिया में लापरवाही की बात कही। इसके बाद अधिकारियों को फटकार लगाकर कई निर्देश भी दिए गए थे। मालूम हो कि शहर में प्रतिदिन 800 मैट्रिक टन कचरा निकलता है। 


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