अपनी कंपनियों को भारत शिफ्ट होने को कह रहा अमेरिका, 1000 फैक्ट्री चीन से इंडिया में आयेगी
Apna Lakshya News
कोरोना आपदा और इसकी भूमिका में चीन की बदनामी ने उसकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। और इसका सीधा फायदा भारत को मिलता दिख रहा है। स्थिति ऐसी बन गई है कि 1000 से अधिक विदेशी कंपनियां चीन छोड़कर भारत आने को तैयार है। अमेरिका की तमाम कंपनियां अब चीन के विकल्प की तलाश कर रही हैं और उनकी नजर भारत पर है। Economic Times के मुताबिक पिछले सप्ताह अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट्स के सीनियर अधिकारियों और भारत में काम कर रही अमेरिकन कंपनियों के प्रतिनिधियों के बीच बैठक हुई थी। बैठक का आयोजन अमेरिकन चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने किया था। बैठक में भारत को निवेश के लिए नये विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। यूएस गवर्नमेंट डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट्स ने सभी बिजनेस को कहा कि भारत में काम करो। बेहतर विकल्प है।
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट्स में साउथ एशिया के असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ स्टेट थॉमस वाजदा ने इस बैठक में कहा कि जो इंडस्ट्रियल ऐक्टिविटी अभी चीन में हो रही है बहुत जल्द वह भारत में होने वाली है। अमेरिकी कंपनियों के प्रतिनिधियों से कहा गया है कि वे अपने प्रस्ताव को लेकर भारत सरकार से सामने पहुंचे और इन्सेंटिव की मांग करें जिससे आने वाले दिनों में यहां अमेरिकन कंपनियों का तेजी से विस्तार हो सके।
इधर Business Today की एक रिपोर्ट की मानें तो करीब 1000 विदेशी कंपनियां ऐसी हैं जिनकी नजरें भारत में उत्पादन शुरू करने पर टिकी हैं। इन कंपनियों के बीच ‘एग्जिट चाइना’ मंत्र यानी चीन से निकलने की सोच मजबूत होती जा रही है। निश्चित तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छी खबर है।
1000 विदेशी कंपनियां जहां भारत में उत्पादन शुरू करने पर नजरें गड़ा रही हैं तो 300 कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने सक्रियता से चीन से निकलने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। ये कंपनियां भारत को एक वैकल्पिक मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर देखने लगी हैं। कंपनियों ने सरकार के अलग-अलग स्तर पर अपनी तरफ से प्रस्ताव भेजने शुरू भी कर दिए हैं। कंपनियों की तरफ से केंद्र सरकार के विभागों के अलावा विदेशों में भारतीय उच्चायोगों और राज्य के औद्योगिक विभागों के पास प्रपोजल भेजे गए हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार को भी इस तरह के प्रस्ताव मिले हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने चीन से पलायन करने वाली कंपनियों को गौतमबुद्ध नगर जनपद में जगह देने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम तथा निर्यात प्रोत्साहन मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने इस बाबत पिछले हफ्ते 15 अप्रैल को एक संयुक्त बैठक की है। जिसमें इन कंपनियों को जमीन देने पर विस्तार से विचार किया गया। उत्तर प्रदेश में आने वाली कंपनियों को सरकार द्वारा इंसेंटिव और कैपिटल सब्सिडी देने पर भी विचार किया जा रहा है। औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने गौतमबुद्ध नगर की तीनों विकास प्राधिकरणों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों और चेयरमैन आलोक टंडन को इस बाबत तैयारियां करने का भी निर्देश दिया है।
कोरोना आपदा की वजह से चीन पसंदीदा मैन्युफैक्चरिंग हब होने का अपना तमगा खोने की तरफ बढ़ रहा है। हजारों विदेशी कंपनियों की तरफ से भारत में अथॉरिटीज के साथ अलग-अलग स्तर पर वार्ता जारी है। जो कंपनियां भारत आने को उत्सुक हैं उनमें मोबाइल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज, टेक्सटाइल्स और सिंथेटिक फैब्रिक से जुड़ी कंपनियां शामिल हैं। कंपनियां अब भारत को अगली मैन्यूफक्चरिंग हब के तौर पर देख रही हैं। एक अधिकारी की मानें तो सरकार वर्तमान समय में 300 कंपनियों के साथ वार्ता में व्यस्त है। इन कंपनियों के साथ इनवेस्टमेंट प्रमोशन इकाई, केंद्र सरकार के विभागों के अलावा राज्य सरकारें बातचीत कर रही हैं।
एक बार जब कोरोना वायरस से बिगड़ी स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी तो फिर कंपनियों के साथ वार्ता निर्णायक दौर में पहुंचेगी और भारत एक वैकल्पिक जगह के तौर पर सामने आएगा। जापान, अमेरिका और साउथ कोरिया की कंपनियां जो चीन पर निर्भर हैं, अब काफी डरी हुई हैं और भारत आना चाहती हैं। नए मैन्यूफैक्रर्स को कॉरपोरेट टैक्स बस 17 प्रतिशत ही अदा करना होगा और यह साउथ ईस्ट एशिया में सबसे कम है। चीन इस समय अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरों में है। अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन उस पर आरोप लगा रहे हैं कि उसने इस महामारी को समय रहते नियंत्रित नहीं किया है। कई देश अपने कॉरपोरेट सेक्टर को चीन से यूनिट्स बाहर करने के लिए कह सकती हैं। जापान ने तो अपने यहां के उत्पादकों से साफ कर दिया है कि वो चीन से अलग किसी और देश में अब मैन्यूफैक्चरिंग के विकल्प तलाशें। जापान की शिंजो आबे सरकार ने कहा है कि अगर देश की कंपनियां वो चीन के बाहर जापान या फिर किसी और देश में प्रोडक्शन यूनिट लगाती हैं तो फिर उन्हें 2.2 बिलियन डॉलर के पैकेज से मदद की जाएगी।