10 पैसे की दवा 35 रुपए में बिक रही, प्रिंट रेट और खरीद कीमतों में 350 गुना तक का अंतर

मरीजों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाने के लिए कानून में संशोधन की तैयारी
हालांकि, डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवा लिखना अनिवार्य करने से नहीं, कीमतों पर लगाम से मरीजों को फायदा मिलेगा
ब्रांडेड दवा और जेनेरिक दवा की कीमतों में भी 204 गुना तक का अंतर



नई दिल्ली. सरकार मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध करवाने के लिए कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। इसके बाद डॉक्टर्स को मरीजों के लिए सिर्फ जेनेरिक दवा लिखनी होंगी, न कि किसी विशेष ब्रांड या कंपनी की। इसके बाद भी मरीजों को सस्ती दवाएं मिलने लगेंगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि जेनेरिक दवाओं के प्रिंट रेट यानी इन दवाओं पर छपने वाली कीमत पर कोई नियंत्रण नहीं है। आईएमए के सदस्य और मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर डॉक्टर हेमंत जैन ने बताया कि ब्रांडेड मेडिसिन पर फार्मासिस्ट को 5 से 20 प्रतिशत तक कमीशन मिलता है, पर जेनेरिक मेडिसिन की प्रिंट रेट और रीटेलर की खरीद कीमत में 50 गुना से 350 गुना तक का अंतर होता है। 10 पैसे की बी कॉम्प्लेक्स 35 रुपए तक में बिकती है। इसका आम जनता या मरीजों को उतना फायदा नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए। ऐसे में सरकार को जेनेरिक मेडिसिन के प्रिंट रेट पर भी लगाम लगाने की जरूरत है, वरना जनता को कोई फायदा नहीं होने वाला।
आम तौर पर सभी दवाएं एक तरह का "केमिकल सॉल्ट' होती हैं। इन्हें शोध के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाया जाता है। जेनेरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसी के नाम से जानी जाती है।


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