700 साल से दरगाह की सेवा में राजपूत परिवार

इंदौर में हजरत दूल्हा सैयद सरकार की दरगाह


अपना लक्ष्य


मोपाल प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम की सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कई जगहों पर देखने को मिलती है। ऐसी ही एक मिसाल इंदौर शहर में देखने को मिली। यहां पर एक मशहूर मजार है, जिसकी सेवा में एक राजपूत परिवार 700 सालों से लगा हुआ है। शहर के नंदलालपुरा चौराहा स्थित हजरत दूल्हा सैयद सरकार की दरगाह का इंदौर में अपना खास स्थान है। इस दरगाह की देखरेख, साज-सज्जा और सेवा की जिम्मेदारी एक राजपूत परिवार 12 पीढ़ियों से सात सौ साल से संभाल रहा है। जियारत के लिए आने वाले जायरीनों को देखकर अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि कौन हिंदू, कौन मुस्लिम, सिख या किसी अन्य धर्म को मानने वाला है। दरगाह क्षेत्र 15 गुणा 25 वर्गफीट में है और यहां चार दरगाह हैं। ये सभी सैयद सरकार के परिवार के सदस्यों की हैं। यहां सेवा कर रहे संजय बड़गुर्जर बताते हैं कि मेरे पिता हर दिन तड़के तीन बजे उठ जाते हैं। इसके बाद दरगाह पर चादर बदलना, साफ- सफाई और अन्य सारे काम करते हैं। मध्यभारत में हिंदू परिवार द्वारा ताजिया निकालने की शुरुआत भी हमारे परिवार ने ही की। एक समय सबसे बड़ा ताजिया हमारे परिवार द्वारा ही निकाला जाता था। इसके लिए होलकर शासन ने हमें सम्मान स्वरूपदंड प्रदान किया था जो आज भी हमारे पास है। परिवार के टेकचंद बड़गुर्जर का कहना है कि 25 दिसंबर को दरगाह पर उर्स का आयोजन होता है। इसमें सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं। उधर सरकारी ताजिया इंतजामिया कमेटी के सदर हाजी इनायत हुसैन कुरैशी बताते हैं कि यहां हिंदू राजा की मन्नतों के ताजिये मुस्लिम समाज के लोग उठाते हैं। राजवाड़ा पर इमामबाड़ा महाराजा यशवंतराव होलकर द्वारा बनाया गया है। यह देशभर में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। मोहर्रम की सात तारीख को मेहंदी की रात पर यहां सभी धर्मों के लोग मन्नत मांगने जुटते हैं। शहर में पूर्वांचल, उत्तरप्रदेश, बिहार वासियों के त्योहार छठ में भी मुस्लिम युवक अपना योगदान देते हैं।


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