चिदंबरम का मसला भ्रष्टाचार तक सीमित नहीं है। राष्ट्र को बर्बाद करने की सुपारी ली थी इस आदमी ने..? कैसे आओ जाने..
Apna Lakshya News
देश मे 1 ही नोट की 3-3 असली दिखने वाली currency चल रही थी। 2010 में ये घोटाला उजागर हो गया था लेकिन तथ्य उजागर होने के बाद भी जांच एजेंसियां कांग्रेस सरकार के शीर्ष नेताओं के दबाब में चुप बैठ गयी। काम चलता रहा। मोदी सरकार ने खेल पकड़ा। उनको भी इसकी काट निकालने में 4-5 साल लग गये क्योंकि सभी मंत्रलयों में कांग्रेस के वफादार अधिकारी(सचिव/ निदेशक स्तर के) बैठे थे जो कांग्रेस के साथ मिल कर मलाई खा रहे थे।
इसलिए,वो जांच में सहयोग नही कर रहे थे(फाइल्स नही दे रहे थे, ख़ुफ़िया जानकारी के अनुसार, कई मंत्रलयों में आग की घटना को अंजाम देने की कोशिश की गई जिससे सारे सबूत/ रिकार्ड्स नष्ट हो जाये) क्योंकि उनको कांग्रेस नेताओं के साथ- साथ ख़ुद के पकड़े जाने का भी डर था। अब पिछले 5 सालों में उनमे से अधिकतर अधिकारी या तो रिटायर हो गये है या प्रतिनियुक्ति- स्थानांतरण का कार्यकाल पूरा होने पर अपने मूल विभाग को भेज दिये गए है।तब जा कर अब कार्यवाही का मार्ग प्रशस्त हुआ है। मोदी जी का 3 महीने पहले का भाषण तो आपको याद होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि "भ्रष्टाचारियों को वो पिछले 5 साल में जेल के दरवाज़े तक तो ले आये हैं, अब 2019 में ऐसे लोगों को जनता के आशीर्वाद जेल में डालना बाकी है।"
देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये नोटबंदी ऐसी ही करतूतों के कारण लिया गया फैसला था।
यकीनन, कांग्रेस द्वारा किया गया विश्व का सबसे बड़ा घोटाला खुलना अभी बाकी है। बहुत बड़े कांग्रेसी और ब्यूरोक्रेट्स पकड़े जायेंगे। इसलिये, चिदम्बरम को बार -बार जमानत दी जा रही थी।
दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला खुलेगा 2019 के बाद जो शायद दुनिया में कहीं नहीं हुआ होगा और इस महाघोटाले का मुख्य अभियुक्त है चिदंबरम।
क्यों किया गया अचानक नोटबन्दी का फैसला और क्यों टूट गयी पाकिस्तान की अर्थव्यस्था?
सबूत भी बाहर आयेंगे। जांच हो रही है। पीएम मोदी ने नोटबंदी करके इस घोटाले को रोक तो दिया, मगर उसके बाद यह बात निकल कर सामने आयी कि देश में बिलकुल असली जैसे दिखने वाले एक ही नंबर के कई नोट चल रहे थे। ये ऐसे नोट थे, जिन्हे पहचानना लगभग नामुमकिन था क्योकि ये उसी कागज़ पर छपे थे जिसपर भारत सरकार नोट छपवाती है।
"डे ला रू" जो कि एक ब्रिटिश कंपनी है, इसके साथ मिलकर तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम एक बड़ा खेल खेल रहे थे, जिसमें उनके एडिशनल सचिव अशोक चावला और वित्त सचिव अरविंद मायाराम भी शामिल थे।
कैसा खेला गया घोटाले का खेल.......
घोटाले का प्रारम्भ 2005 में तब हुई जब वित्त मंत्रालय में अरविन्द मायाराम वित्त सचिव के पद पर थे और अशोक चावला एडिशनल सचिव के पद पर थे।कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 2006 में सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड एक कंपनी बनाई गयी, जिसके मैनेजिंग डायरेक्टर अरविंद मायाराम थे और चेयरमैन अशोक चावला थे। यानी दो सरकारी अधिकारी अपने अपने पदों पर रहते हुए अतिरिक्त प्रभार में इस कंपनी को चला रहे थे।
इस प्रकार नियुक्तियों के लिए अपॉइंटमेंट्स कमिटी ऑफ़ कैबिनेट (ACC) के सामने विषय को रखकर उसके अनुमोदन की आवश्यकता होती है।किन्तु चिदंबरम ने भला कब नियम- कायदों की परवाह की जो अब करते.........
अर्थात् ACC के सामने इन नियुक्तियों का विषय लाया ही नहीं गया और ऐसे ही इनकी नियुक्ति कर दी गयी जो इस दृष्टि से पूरी तरह अवैध थी।इसके बाद असली खेल शुरू हुआ। इस घोटाले में चिदंबरम के दायें व बायें हाथ बताये जाने वाले अशोक चावला व अरविंद मायाराम ने भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (BRBNMPL), जो कि नोटों की छपाई का काम देखती है, उससे कहा कि उनकी कंपनी के साथ मिलकर सिक्योरिटी पेपर प्रिंटिंग के सप्लायर को ढूंढो जिसके बाद पहले से ब्लैकलिस्टेड की जा चुकी डे ला रू कंपनी से नोटों की छपाई में इस्तमाल होने वाले सिक्योरिटी पेपर को लेना जारी रखा गया।क्या इसके लिये चिदंबरम् को घूस दी गयी थी? इस ब्रिटिश कंपनी द्वारा या पाकिस्तान के आईएसआई द्वारा चिदंबरम को पैसा दिया जा रहा था....
यह गंभीर जांच का विषय है।
दरअसल वित्तीय वर्ष 2009-10 के दौरान नकली मुद्रा रैकेट का पता लगाने के लिए सीबीआई ने भारत नेपाल सीमा पर विभिन्न बैंकों के करीब 70 शाखाओं पर छापेमारी की तो बैंकों से ही नकली करेंसी पकड़ी गयी।जब पूछताछ की गयी तो उन बैंक शाखाओं के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि जो नोट सीबीआई ने छापें में बरामद किये हैं वे तो स्वयं रिजर्व बैंक से ही उन्हें मिले हैं।यह एक बेहद गंभीर खुलासा था क्योंकि इसके अनुसार आरबीआई भी नकली नोटों के खेल में संलिप्त लग रहा था।हालांकि इतनी अहम खबर को इस देश की मीडिया ने दिखाना आवश्यक नहीं समझा क्योंकि उस समय कांग्रेस सत्ता में थी।
इस खुलासे के बाद सीबीआई ने भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में भी छापेमारी की और आश्चर्य जनक तरीके से भारी मात्रा में 500 और 1,000 रुपये के जाली नोट पकड़े गये।आश्चर्य की बात यह थी कि लगभग वैसे ही समान जाली मुद्रा पाकिस्तान कीखुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा भारत में तस्करी से पहुंचाया जाता था।
अब प्रश्न उठा कि ये जाली नोट आखिर भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानों में कैसे पहुंच गये...
आखिर ये सब देश में चल क्या रहा था..
जाँच के लिये शैलभद्र कमिटी का गठन हुआ और 2010 में कमिटी उस वक़्त चौंक गयी जब उसे ज्ञात हुआ कि भारत सरकार द्वारा ही समूचे राष्ट्र की आर्थिक संप्रभुता को दांव पर रख कर कैसे अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को 1 लाख करोड़ की छपाई का ठेका दिया गया था।जांच हुई तो ज्ञात हुआ कि डे ला रू कंपनी में ही घोटाला चल रहा था। एक षड्यंत्र के तहत भारतीय करेंसी छापने में उपयोग होने वाले सिक्योरिटी पेपर की सिक्योरिटी को घटाया जा रहा था ताकि पाकिस्तान सरलता से नकली भारतीय करेंसी छाप सके और इसका उपयोग भारत में आतंकवाद फैलाने में किया जा सके।इस समाचार के सामने आते ही भारत सरकार द्वारा डे ला रू कंपनी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
मगर अरविन्द मायाराम ने इस ब्लैकलिस्टेड कंपनी से सिक्योरिटी पेपर लेना जारी रखा। इसे लेने के लिये उसने गृह मंत्रालय से अनुमति ली।कहा गया कि यह संचिका चिदंबरम को दिखाई ही नहीं गयी, जबकि यह बात मानने लायक ही नहीं क्योकि वित्त मंत्रालय से यदि गृहमंत्रालय को कोई भी पत्र भेजा जाता है तो पहले अनुमोदन के लिये वित्तमंत्री के सामने पेश किया जाता है।
डे ला रू कंपनी से भारत को दिये जाने वाले सिक्योरिटी पेपर के सिक्योरिटी फीचर को कम किया जा रहा था। यह कंपनी पाकिस्तान के लिये भी सिक्योरिटी पेपर छापने का काम करती है। फिर यह आरोप लगा कि इस कंपनी द्वारा भारत का सिक्योरिटी पेपर पाकिस्तान को गुपचुप तरीके से दिया जा रहा था ताकि भारत के नकली नोट छापने में पाक को सरलता हो।
यहां पाक आईएसआई का नाम सामने आया कि आईएसआई की ओर से कंपनी के कर्मचारियों को घूस दी जाती थी। मगर इस खेल में अरविंद मायाराम क्यों शामिल थे? क्यों वे ब्लैकलिस्टेड कंपनी से पेपर लेते रहे.....?
जब 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आयी, तब गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ये बात पता चली कि इतना बड़ा गोलमाल चल रहा था। इसके बाद उन्होंने सिक्योरिटी पेपर डे ला रू कंपनी से लेना बंद करवाया।यह भी सामने आया कि इस कंपनी से सिक्योरिटी पेपर काफी महंगे दाम पर खरीदा जा रहा था, यानी यह कंपनी देश को लूट रही थी और देश का वित्त मंत्रालय इस काम में विदेशी कंपनी की मदद कर रहा था।
मायाराम के इस काले कारनामे की खबर पीएमओ को हुई तो पीएमओ ने गंभीरतापूर्वक इस मामले को उठाया और मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा इसकी जांच करवाई।
मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा वित्तमंत्रालय से इससे जुड़ी फाइल मांगी गयी। इस वक़्त वित्तमंत्री अरुण जेटली बन चुके थे। मगर इसके बावजूद वित्त मंत्रालय द्वारा फाइल देने में देर की गयी।इसके बाद यह मामला पीएमओ से होता हुआ सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में आया और फिर मोदी ने खुद एक्शन लिया।तब जाकर मुख्य सतर्कता आयुक्त के पास फाइल पहुंची।क्या स्वर्गीय अरूण जेटली ने फाइलें देने में देर करवाई या फिर कांग्रेसी चाटुकारों ने जो वित्त मंत्रालय तक में बैठे हैं, यह बात साफ़ नहीं हो पाई।
नोटबंदी न करते मोदी तो नकली करेंसी का ये खेल चलता ही रहता। डे ला रू से सिक्योरिटी पेपर लेना बंद किया गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने और पीएम मोदी ने की नोटबंदी, जिसके कारण पाकिस्तान द्वारा नकली करेंसी की छपाई बेहद कम हुई और यही कारण है कि कांग्रेस के दस वर्षों में आतंकवादी घटनायें जो आम हो गयी थीं, वे मोदी सरकार के काल में नहीं के बराबर हुईं।
कश्मीर के अलावा देश के किसी भी राज्य में बम ब्लास्ट नहीं हो पाये। आतंकियों तक पैसा पहुंचना जो बंद हो गया था।
पीएम मोदी ने जांच करवाई और मायाराम के खिलाफ मुख्य सतर्कता आयुक्त और सीबीआई द्वारा आरोप तय किये गये।
जिस मायाराम के खिलाफ चार्ज फ्रेम किये गये हैं, उसी को राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने आर्थिक सलाहकार के पद पर नियुक्त कर लिया। यानी एक घपलेबाज को अपना आर्थिक सलाहकार बना लिया।
वहीँ अशोक चावला का नाम चिदंबरम के एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में भी सामने आया।इसके बाद ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन व पब्लिक इंटरेस्ट डायरेक्टर पद से अशोक चावला को इस्तीफा देना पड़ा।जुलाई 2018 में सीबीआई ने चिदंबरम को एयरसेल-मैक्सिस मामले में आरोपी बनाया था। सीबीआई ने चिदंबरम, उनके बेटे कार्ति और 16 अन्य के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी, जिसमें आर्थिक मामलों के पूर्व केंद्रीय सचिव अशोक कुमार झा, तत्कालीन अतिरिक्त सचिव अशोक चावला, संयुक्त सचिव कुमार संजय कृष्णा और डायरेक्टर दीपक कुमार सिंह, अंडर सेक्रेटरी राम शरण शामिल हैं।
इस पूरे मामले से यह बात तो साफ़ हो जाती है कि चिदंबरम ने देश में केवल एक या दो नहीं बल्कि जहां-जहां से हो सका, वहां-वहां से देश को लूटा।
चिदम्बरम व उसके बेटे कार्ति चिदंबरम ने मिलकर खूब लूटा और इस खेल में न केवल नौकरशाह शामिल रहे बल्कि न्यायपालिका में भी कई चिदंबरम भक्त बैठे हैं, जो आज भी उसे जेल जाने से बचाते आ रहे हैं।
सभी में लूट का माल मिलकर बंटता था और आज चिदंबरम जेल में हैं और सीबीआई व ईडी के समक्ष धीरे धीरे पोल खोल रहें हैं।
देश को कैसे-कैसे और किस-किस ने लूटा, सबको एक-एक करके सजा होगी। कांग्रेसी चाटुकार नौकरशाहों समेत मां-बेटे व कई कांग्रेसी नेता सलाखों के पीछे पहुंचेंगे।इसमें कोई शक न हो।।लेखक सुशील कुमार सरावगी जिंदल पत्रकार दिल्ली ९४१४४०२५५८