जनता का कलेक्टर यानी डीसी कैसे होना चाहिए।

Apna Lakshya News


राजस्थान के युवा आईएएस अघिकारी डा. समित शर्मा ने यह साबित कर दिखाया है कि प्रशासनिक ढांचे में जिला कलेक्टर सबसे मजबूत कड़ी होता है। यदि कलेक्टर कार्यकुशलता, संवेदनशीलता और मेहनत से काम करे तो वह अपने जिले की कायापलट कर सकता है। नागौर के जिला कलेक्टर के रूप में अपने मात्र सवा साल के छोटे से कार्यकाल में डा. शर्मा ने इतना कुछ कर दिखाया, जितना कई जिलों में आजादी के बाद से अब तक नहीं हुआ। अफसोस इस बात का है कि ऎसे कर्मठ अघिकारी जल्दी ही स्थानीय राजनेताओं की आंखों की किरकिरी बन जाते हैं। उनकी तमाम अच्छाइयां एक तरफ रह जाती हैं और क्षुद्र राजनीति जीत जाती है।



 नागौर में जो कुछ हुआ, वह जिला कलेक्टरों के लिए मिसाल है। तभी तो जनता डा. शर्मा के तबादले को पचा नहीं पाई और तबादला रद्द करवाने के लिए सड़कों पर उतर आई। सवा साल पहले जब चित्तौड़गढ़ से उनका तबादला हुआ, तब भी जनता उसे रद्द करवाने के लिए इसी तरह सड़कों पर उतर आई थी। बार-बार ऎसा क्यों होता है? उनकी कार्यप्रणाली पर नजर डाली जाए तो इसका जवाब मिल जाएगा। केस स्टडी मानकर इसे देशभर में अपना लिया जाए तो न सुख की कमी रहेगी, न समृद्धि की। उन्होंने पदभार संभालते ही अकेले अचानक निरीक्षण का कार्य शुरू किया। 



कभी वे देर रात को निकल जाते तो कभी सुबह-सवेरे। रात को अस्पताल में मरीज बनकर पहुंच जाते। तो सुबह सड़कों पर सफाई व्यवस्था देखने। हर दफ्तर, हर कार्य का निरीक्षण होने लगा। इतना करते ही तमाम गड़बडियां सामने आ जातीं। फिर उन्होंने निरीक्षण के लिए बाकायदा टीमें गठित कर दीं। सुबह 5-6 बजे टीमों को बुलाया जाता। वहीं उन्हें बताया जाता कि निरीक्षण के लिए कहां जाना है। गड़बड़ करने वालों को छोड़ा नहीं जाता। किसी को नोटिस, किसी को चार्जशीट तो किसी के खिलाफ मामले। देखते-देखते नागौर जिले के दफ्तरों, अस्पतालों, स्कूलों का नक्शा बदल गया। कर्मचारी काम पर आने लगे और जनता को राहत मिलने लगी। कर्मचारियों को कुछ दिन अपनी आदतें सुधारने में लगे, फिर वे भी सहयोग देने लगे।



 कार्यप्रणाली का दूसरा हिस्सा थी, नियमित जन सुनवाई। उनका दफ्तर खुला था। कोई भी शिकायत लेकर आ सकता था। कलक्टर संबंघित अघिकारी से खुद फोन पर बात करते और फिर पीडित को इस हिदायत के साथ भेजते कि निश्चित अवघि में काम नहीं हो तो फिर आ जाना। शिकायतों को बाकायदा रजिस्टर में दर्ज कर फॉलोअप किया जाता। हर सोमवार को प्रमुख अघिकारियों को बुलाया जाता। उन्हीं के सामने शिकायतें सुनी जातीं और मामले निपटाए जाते। खींवसर क्षेत्र में बिजली की चोरी ही नहीं होती, अवैध लाइनें और ट्रांसफारमर तक लगे थे। लगातार निरीक्षण से वे सब गायब हो गए और बिजली राजस्व करोड़ों रूपए बढ़ गया।



 पेशे से चिकित्सक रह चुके डा. शर्मा ने सबसे अनूठा काम तो आम जनता को सस्ती चिकित्सा उपलब्ध कराने का किया। सबसे पहले नागौर चिकित्सालय में जेनेरिक दवाओं की दुकान खुलवाई, जिस पर दवाएं, ब्रांडेड दवाओं के मुकाबले आधी और कई बार चौथाई से भी कम दर पर मिल जाती। देखते-देखते जिले में ऎसी दो दर्जन दुकानें खुल गई। कलक्टर ने पर्चे बांटकर और बोर्ड लगवाकर जनता को दर में अंतर समझाया। डाक्टरों पर ब्रांडेड दवा लिखने पर पूरी तरह रोक लगवा दी। इसी तरह घटिया निर्माण सामग्री, मिलावटी खाद्य पदार्थ, मिलावटी दूध की जांच के लिए चल प्रयोगशालाएं चलवा दीं। खास बात यह रही कि ज्यादातर ऎसे अभियानों में वे खुद जाते। पानी की समस्या दूर करने के लिए नहरी व नलकूप के जल को मिलाकर सप्लाई करने का अनूठा तरीका निकाला, जिसका परिणाम यह हुआ कि पानी की किल्लत को लेकर इस बार एक भी धरना-प्रदर्शन नहीं हुआ। जिला कलक्टर नियमित रूप से गांवों में चौपाल लगवाते और स्वयं रात को वहीं रूकते। 



 उनका एक तरीका यह भी रहा कि जब भी मौका मिलता सार्वजनिक कार्यक्रमों में चले जाते। कभी लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रेरित करते तो कभी श्रमदान के लिए। 'रिश्वत नहीं दें, कोई मांगे तो बताएं' जैसे बोर्ड उन्होंने हर सरकारी दफ्तर में लगवा दिए। राशन की दुकानें समय पर खुलने लग गई। कूड़ादान बने स्थान पर सुंदर बगीचा बनवाने जैसे काम तो मात्र श्रमदान से करवा लिए। सब कुछ ठीक चलते हुए उनसे एक 'नासमझी' यह हुई कि उन्होंने एक रसूखदार नेता से जुड़ी अवैध शराब कारखाने को बंद करा दिया। संभवत: यही उनके स्थानांतरण का कारण बना। हालांकि कहा यह जाएगा कि उनकी योग्यता को देखते हुए बेहतर कार्य सौंपा गया है।



 निश्चित ही उनके जैसे और भी अघिकारी होंगे। प्राय: ऎसा ही होता है। फील्ड में अच्छा प्रदर्शन करने वालों को राजधानी में जनता से दूर बैठा दिया जाता है। जबकि जिन अफसरों में जनता के बीच अच्छा काम करने का नैसर्गिक गुण हो, उन्हें अघिकाघिक समय तक फील्ड में रखा जाना चाहिए। जो जिला कलक्टर मात्र अपने शानदार दफ्तरों की शोभा बढ़ाते हैं, उन्हें जनता के बीच कभी नहीं भेजा जाना चाहिए। सरकार को जनता की आवाज सुन कर डा. समित शर्मा को पुन: नागौर कलक्टर बनाना चाहिए ताकि उन्हें दशकों से पिछड़े इस जिले को पटरी पर लाने का मौका मिल सके। बल्कि जिला कलक्टर जैसी संवेदनशील नियुक्ति के लिए न्यूनतम व अघिकतम कार्यकाल तय होना चाहिए। ऎसा नहीं किया गया तो अच्छे अघिकारी हतोत्साहित होते रहेंगे, जनता की पीड़ा कोई नहीं सुनेगा और भ्रष्ट नेता जातिवाद जैसा विष फैला कर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे।


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