कैलाश जोशी: मध्य प्रदेश के इस सीएम पर जनसंघ से ज़्यादा समाजवादियों को भरोसा था।
श्री कैलाश जोशी जी मध्यप्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे. जो इमरजेंसी में जेल गये और वापस लौटे तो फिर दोबारा चुनाव जीत गये और 1977 में बन गये मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री।
इमरजेंसी में हुई जेल कई नेताओं को फली थी. लेकिन कम ही हुआ कि किसी नेता को विधानसभा के सामने गिरफ्तार करके जेल भेजा गया और जब वो बाहर आये तो न सिर्फ चुनाव जीतकर दोबारा विधानसभा में गए बल्कि मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ली. और ये सब बिना किसी और कि लकीर छोटी किए. इमरजेंसी हटने के बाद श्रीमोरार जी देसाई पीएम बने. उन्होंने उन सभी राज्यों की सरकारें बर्खास्त कर दीं, जहां कांग्रेस शासन कर रही थी. मध्य प्रदेश में भी उनमें से एक था. नए सिरे से विधानसभा चुनाव हुए.
इमरजेंसी के बाद जब चुनाव हुए तो जनता पार्टी की जीत हुई और प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई.
कई विपक्षी दलों के मर्जर से बनी जनता पार्टी ने 320 में 231 सीटें जीतीं. इन 231 सीटों में अकेले जनसंघ गुट की 129 सीटें थीं. दूसरे नंबर पर समाजवादी थे, जिन्होंने इस गठबंधन में 80 सीटें जीती थीं. सामान्य गणित कहता था, मुख्यमंत्री जनसंघ से बने. लेकिन जनसंघ में भी मुख्यमंत्री पद के तीन-तीन दावेदार थे. कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा और वीरेंद्र कुमार सखलेचा. तीन दावेदारों के बीच जनसंघ की स्वाभाविक पसंद थे सखलेचा. 1967 में गोविंद नारायण सिंह के वक्त जब संविद सरकार बनी थी, तो सखलेचा डिप्टी सीएम थे. उन्हें प्रशासनिक राजकाज का अनुभव था. फिर जनसंघ के संगठन मंत्री और मध्यप्रदेश में जनसंघ के पितृ पुरुष माने जाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे का हाथ भी सखलेचा के सिर पर ही था.
कुशाभाऊ ठाकरे चाहते थे कि मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा ही बनें.लेकिन समाजवादी नहीं चाहते थे कि सखलेचा सीएम बने. वजह? सखलेचा की जिस बात पर कुशाभाऊ के यहाँ वारी-वारी जाते थे, उसी के लिए वो समाजवादियों को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. सखलेचा मनसा-वाचा-कर्मणा संघ के आदमी थे. वो सीएम बनते तो मध्यप्रदेश सरकार संघ की शाखा संस्कृति लाकर रहते. इसीलिए जनता पार्टी में समाजवादी, भारतीय लोकदल और दूसरे घटक दलों ने सखलेचा के नाम पर वीटो लगा दिया. जनसंघ 1952 के चुनाव से कोशिश कर रहा था. 25 साल बाद राजयोग बना था. लेकिन गरारी जो फंसी तो चलने का नाम नहीं ले रही थी. ऐसे में कुशाभाऊ ने संयम से काम लिया. एक कदम पीछे हटे और 1972 से 1977 तक नेता प्रतिपक्ष रहे श्री कैलाश जोशी जी का नाम आगे बढ़ा दिया।
मूलतः एक कपड़ा व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले कैलाश चंद्र जोशी देवास से थे. वही देवास, जहां 1929 से संघ के संस्थापक हेडगेवार जी का आना-जाना था. जोशी जी जनसंघ बनने के बाद से ही इसके साथ जुड़े हुए थे. एक बार नगर पंचायत अध्यक्ष रहने के बाद जोशी जी 1962 से लगातार बागली विधानसभा से विधायक बनते आ रहे थे. 19 महीने तक मीसा के तहत जेल में बंद रहने के बाद जब वो बाहर आए तो बागली ने उन्हें फिर जिताया था. लेकिन जोशी जी की स्वीकार्यता बागली से बाहर भी थी और जनसंघ से बाहर भी. व्यवहार में कड़क जोशी के विरोधी भी कहते, क्या सीधा और सच्चा आदमी है. इसीलिए समाजवादियों को लगा कि जोशी की छांव में वो बचे रहेंगे और आगे पनपने की गुंजाइश होगी. सो उन्होंने हामी भर दी. जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड को भी जोशी का नाम ज़्यादा जंचा. 24 जून, 1977 को कैलाश जोशी मध्यप्रदेश के इतिहास में पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री हुए।
1998 में कैलाश जोशी जी राजगढ़ से सांसदी का चुनाव 56 हज़ार की मार्जिन से हारे. जीते दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह. लेकिन जोशी के कद को देखते हुए वाजपेयी ने उन्हें एक बार फिर राज्यसभा भेजा गया. 2002 में जब विक्रम वर्मा जी को दिल्ली बुलाया गया और उमा भारती जी ने भाजपा अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया, तब कैलाश जोशी जी को भितरघात से जूझ रही मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया.
2004 में वाजपेयीजी सत्ता से बाहर हो गए, लेकिन जोशी के सितारे बुलंद रहे. 2004 में कैलाश जोशी ने भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और ये जीत 2014 तक बरकरार रही।
कैसे मुख्यमंत्री रहे श्री कैलाश जोशी में इतनी सादगी थी कि उनके पास एक कार तक नहीं थी. 17 मई, 1981 को कैलाश जोशी लगातार पांचवी बार बागली से विधायक बने. इसके लिए कार्यकर्ताओं ने कैलाश जोशी जी का सम्मान कार्यक्रम रखा. अटल बिहारी वाजपेयी जी और राजमाता सिंधिया जी को दावत दी गई. मध्यप्रदेश की राजनीति में संत कहलाने वाले जोशी जी का मंच पर सम्मान हुआ और कार्यकर्ताओं ने चंदे से पैसा जुटाकर खरीदी गई एम्बेसडर_कार की चाबी जोशी जी को सौंपी गई. ये जोशी जी की पहली गाड़ी थी. ऐसे थे श्री कैलाश जोशी जी।