शिव सिंह राजपूत उर्फ नाम सुनील राजपूत दहिया**


दहिया राजपूत,  मारवार में सबसे ज्यादा शासन करने का श्रेये ** दहिया राजपूतो  को जाता है!** नागोर में किन्सरिया गाव स्थित केवाई माता  के मंदिर में मिला शिलालेख पर लिखा है दधिचिक वंश दहियक गढ़पति  यानि इस राजस्थान की धरती पर दहिया वंश का  ज्यादा   गढ़ों पर अधिकार रहा है इसलिए तो इसे गढ़पति कहते है ! लेकिन ज्यादा समय तक इतिहास नहीं लिखा जाने के कारन इनका ज्यादा वर्णन नहीं मिलता है! लेकिन गढ़पति की उपाधि, राजा, रावत, राणा आदि नमो की उपाधि ( संबोधित करते है ) से जाना जाता है लेकिन गढ़पति की उपाधि से दहिया राजपूतो को नवाजा गया है जो अपने आप में अपनी महता को दर्शाता है ! दहिया राजपूत दधिची  Rushi  की संतान है जो अपनी हड्डी इन्द्र को दान में दी थी जिससे इन्द्र का चीना हुआ राज्य वापिस मिला था यानि दहिया उनकी संतान है जो अपने आप में अनूठी   है इतिहास नहीं लिखा जाने के कारण दहिया राजपूत गोत्र का ज्यादा वर्णन नहीं मिलता है नेणसी की ख्यात के अनुसार मध्यकाल में दहिया राजपूतो को प्रथम वर्ग का दर्जा था!
संवत १२१२ में भडियाद परबरसर के राणा वराह दहिया अपने दल-बल सहित द्वारकाधीश की तीर्थयात्रा पर जाते समय जालोर पर पड़ाव किया ! राणा वराह दहिया के साथ उनकी चार रानियाँ भी थी ! पहली रानी छगन कुंवर कच्छावा {नेतल} की, दूसरी सतरंगा हाडी रानी {कोटा} की, तीसरी रानी अहंकारदे भटियानी {कोल कोटडी}, चौथी रानी परमादे चौहान, खिवलगढ़ , की इन चारो रानियों का उल्लेख राव समेलाजी की बहियों से लिया गया है ! उस समय जालोर किले पर राजा  कुन्तपाल परमार का राज्य था ! जब अहंकार देवी इच्छित वर पाने के लिय भगवन की आराधना कर रही थी उस समय उनकी दावदियो ने पानी  भरते समय राणा वाराह दहिया का ठाठ-बाठ देखकर राजकुमारी अहंकार दे को बताया ! राजकुमारी ने अपने माता-पिता से राणा वाराह से शादी करने के बात कही ! तब कुन्तपाल परमा


Popular posts from this blog

पैदल यात्रा निकाल रहे 2 कांग्रेस विधायक को पुलिस ऐसे ले गयी

इंदौर-तुलसी सिलावट के समर्थकों ने नगर निगम की टीम को वापस दौड़ा दिया।

पर्सनल लॉ बोर्ड की 17 को बैठक